गांव में लकडि़यों का वजन उठाने से लेकर टोक्‍यो ओलंपिक में सिल्‍वर मेडल जीतने तक, वेटलिफ्टर Saikhom Mirabai Chanu की सफलता आपको रोमाचिंत कर देगी


इंफाल से टोक्‍यों तक 4 फुट 11 इंच की वेटलिफ्टर मीराबाई चानू की  एवरेस्‍ट जीतने के बराबर महान सफलता

Tokyo Olympics 2020 : मणिपुर की राजधानी में इम्‍फाल के एक छोटे से गांव में एक लड़की अपने घर के काम में बचपन से ही योगदान देना शुरु कर दिया था जैसा की हमारे देश में यह होना आम बात है । लड़कियां  घर के काम काज के लिए शुरु से ही अपना योगदान देना शुरु कर देती है और भारत के गांवों की यह घर-घर की कहानी है । लेकिन इंफाल के एक छोटे से गांव में उस दिन कुछ विेशेष होने जा रहा था । विधाता ने 12 साल की चानू की जिंदगी में जो पटकथा लिखी थी उसका सबसे निर्णायक दिन मानों आ गया था और एक प्रतिभा की खोज उसके अपने भाई द्ववारा किया जाना तय हो चुका था । 

जी हां विधाता ने उसकी जिंदगी की पटकथा में यह सब जैसे कुछ सोचकर रचा था । जव 12 साल की उम्र में मीराबाई चानू जलाने के लिए उपयोग की जाने वाली लकडि़यों का बंडल लेकर अपने घर की तरफ जा रही थी तो उनके भाई ने देखा की यह तो कुछ अधिक वजन है और उनकी बहन बड़े आराम से इसे उठाने में कामयाब रही है । बस यह वहीं पल था जहां से मीराबाई चानू के जीवन की एक नई शुरुआत हो रही थी क्‍योंकि उनके भाई ने उस प्रतिभा को पहचान लिया था जो यह कह रही थी कि इस लड़की में कुछ तो ऐसा है जो उसे दूसरों से अलग करता  है । 

उसके बाद कोच विजय शर्मा की शिक्षा- दीक्षा और चानू के लगन और कड़े परिश्रम का कमाल था कि आज वह टोक्‍यो ओलंपिक में भारत के लिए भारोतोलन में 49 किलोग्राम की श्रेणी सिल्‍वर मेडल जीतने में कामयाब रही हैं । 

उनके आत्‍मविश्‍वास का स्‍तर कितना गजब था इस बात को समझने के लिए 20 तारीख की  उनकी Twitter की उस पोस्‍ट से समझा जा सकता है जिसमें वह लिखती है कि "मुझे मेडल जीतने का पूरा आत्‍मविश्‍वास है", उन्‍होने देश के पूर्व खेलमंत्री किरण रिजिजू से मेडल जीतने का जो वादा किया भी किया था और अपनी इस बात को आज उन्‍होने सही साबित कर दिया है । 4 फुट 11 इंच की यह लड़की कद में भले छोटी  नजर आती हो लेकिन भारतीय खेल की दुनिया में उन्‍होने आज एक इतिहास रच दिया है, टोक्‍यो ओलंपिक में उनका सिल्‍वर मेडल जीतना एवरेस्‍ट फतह करने के बराबर की सफलता है । 


उनकी इस सफलता की  कहानी को देश के बच्‍चों और युवाओं को सुनाई और बताई जानी चाहिए क्‍योंकि इस कहानी में वह सबकुछ है जो जीतना सिखाता है और जीवन को कैसे आगे ले जाया जाता है उसकी झलक भी । असफला मिलने पर कैसे लड़ा जाता और अपने को मजबूत कैसे  बनाया जाता है इसे जाना और समझा जा सकता है । 

मणिपुर की राजधानी इंफाल के एक गांव से लकडि़यों का वजन उठाने से लेकर टोक्‍यो ओलंपिक में सिल्‍वर मेडल जीतने तक 26 साल की मीराबाई चानू की जिंदगी की कहानी में ऐसे पल है जो बताते है कि सफलता तक पहुचने के लिए आपको कड़ी मेहनत, एक गुरु और आपकी प्रतिभा को पहचान करने वाला एक व्‍यकित चाहिए होता है । एक माहौल चाहिए होता है और परिवार का विश्‍वास जो आपको आगे के संघर्ष के लिए तैयार करता है । 

दूसरी एक बात और कोई भी काम छोटा नहीं होता है वह एक दिन आपको बड़़ा बनाने में योगदान कर सकता है कम से कम अपने परिवार के लिए काम करते हुए 12 साल की चानू का लकडि़यों का बंडल उठाना तो यहीं सिखाता है । 



टोक्‍यो ओलंपिक खेलो में भारोतोलन में वह भारत की तरफ से एकमात्र दावेदार थी लेकिन उन्‍होने सिल्‍वर मेडल जीतकर देश का, अपना और मणिपुर का नाम रोशन कर दिया है । आज के दिन उनकी इस सफलता में उनकी कड़ी मेहनत और उनके कोच विजय शर्मा की ट्रेनिंग का बहुत बड़ा योगदान है । सबसे खास बात उनके भाई ने सबसे पहले इस बात को पहचान लिया था कि उनकी बहन में कुछ अलग करने की क्षमता है और उस एक बात का कमाल है कि आज टोक्‍यो ओलंपिक में देश के लिए मीराबाई चानू ने भारोतोलन में 49 किलोग्राम वजन की श्रेणी में सिल्‍वर मेडल जीतकर इतिहास रच दिया है । भारत सरकार और पूर्व खेलमंत्री ने अपनी इस खिलाड़ी के लिए सुविधाएं और चोट लगने पर इलाज के लिए जो बेहतर प्रयास किए उन सब बातों को रोल भी बहुत महत्‍वपूर्ण हैं । 

टोक्‍यो ओलंपिक 2020 में आयोजित होने से पहले विश्‍व मे कोविड की दस्‍तक से जब हर कोई अपने घरो में बंद होकर बचाव के उपाय खोज रहा था ऐसे समय में ओलंपिक खेलों को भी एक साल के लिए आगे बढ़ा दिया गया था । सोचकर देखिए उन खिलाडियों के बारे में जिन्‍होने पिछले 4 साल से इस प्रतियोगिता के लिए दिन रात एक करके तैयारी की हो, आखिर वो उस पल क्‍या सोच रहे होंगे । इसमें मीराबाई चानू भी एक थी लेकिन वह ठहरी नहीं, उन्‍होने घर को ही मैदान बना लिया, जिम बंद हो गए लेकिन आंगन को ही जिम बना लिया क्‍योंकि खुद से शर्त जो लगा रखी थी, रुकना नहीं है, लोगों ने पूछा इससे क्‍या होगा तो चानू और उनके साथ के दूसरे खिलाडि़यों ने कहा 365 दिन की ट्रेनिंग और होगी और मेडल का रंग और बेहतर होगा और मीराबाई चानू ने इस बात को साबित करके दिखा दिया है । आज भारत ही नहीं मणिमपुर की राजधानी इंफाल का हर इंसान गर्व से प्रफुल्लित है अपनी इस बेटी की सफलता पर ।   

अपनी इस सफलता पर वह‍ कहती हैं कि " मैं इस बात से बहुत खुश हूं कि मैं मैडल जीतने में सफल रहीं हूं । पूरा देश मेरी तरफ देख रहा था और लोगों को मुझसे बहुत उम्‍मीदें थी, इस एक बात को लेकर शुरु में थोड़ा नर्वस भी थी लेकिन में अपना बेस्‍ट प्रदर्शन करने को लेकर निश्चिवत थी और इस बात का मुझे आत्‍मविश्‍वास था ..वास्‍त में मैंने इसके लिए बहुत कठिन परिश्रम किया हैं । " टोक्‍यो ओलंपिक चिजेता मीराबाई चानू के यह शब्‍द कई खिलाडि़यों के लिए प्रेरणा का काम करेंगे । 


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