Devanand filmography : जब देवसाहब अभिनेता बनने की इच्छा लेकर आए

 

Devanand filmography : जब देवसाहब अभिनेता बनने की इच्छा लेकर आए

मुंबई की मायानगरी में जब देवसाहब अभिनेता बनने की इच्छा लेकर आए तो संघर्ष के दौर में एक समय ऐसा आया की पेट पालने के लिए सेना की नौकरी करनी पड़ी। दरअसल देव साहब मायानगरी जब आए थे तो उनकी जेब में मात्र 30 रुपए ही थे । लेकिन जिंदगी तो देव साहब को एवरग्रीन सितारे के रुप में देखना चाहती थी और देवआनंद ने नौकरी को अलविदा कहकर बॉलीवुड में अभिनेता के रुप में एक से बढ़कर एक फिल्में बनाई। ' ओ भाई तेरे मत्थे पर तो सूरज की तरह चमकना लिखा है ' वो एक ऐसे एवरग्रीन सितारे बन गए जिसकी दीवानगी का आलम सिनेजगत में जमकर चला। और ऐसा होना जरुरी भी था क्योंकि अमृतसर के उस शरबत वाले की बात भी तो सच होनी थी जिसने देवसाहब को बचपन में देखकर कहा था ' ओ भाई तेरे मत्थे पर तो सूरज की तरह चमकना लिखा है '। कहा जाता है कि देवसाहब ने बॉलीवुड में सफल हो जाने के बाद उस शरबत वाले को खोजने का भरपूर प्रयास किया था, वह उसकी जमकर खातिरदारी करना चाहते थे। 

आप (Devanand ) ब्लैककोट ना पहना करो लड़कियां बेहोश हो जाती है

 देव साहब (Devanand ) की बातें, देव साहब की आंखे, देव साहब का स्टाइल उनके प्रशंसको पर जादू सा असर करती थी , लड़कियों में उनकी दिवानगी का क्रेज तो इस तरह से था कि देव साहब से कहा गया था कि आप ब्लैककोट ना पहना करो लड़कियां आपका ब्लैककोट देखकर बेहोश हो जाती है। देवसाहब ने फिल्म कालापानी में ब्लैक रंग का ड्रेस पहना था और उसके बाद इस तरह के कपड़े पहनना बंद कर दिया था। देव साहब से जब इस बारे में पूछा जाता था तो वह कहते थे हां मैंने सुना था कि लड़कियां बेहोश हो जाती है।

Devanand  रील लाइफ ही नहीं रियल लाइफ के भी हीरो

  देव साहब एक अच्छे अभिनेता के साथ अच्छे निर्देशक भी थे और अपने निर्देशन में पहली फिल्म हरे रामा , हरे कृष्णा बनाने का फैसला किया था। इस फिल्म से जुड़ी सबसे खास बात यह है कि फिल्म का टाइटल मनोज कुमार ने रजिस्टर्ड करा रखा था जब देव साहब को पता चला तो उन्होंने मनोज कुमार जी को फोन कर कहा मनोज आज से यह टाइटल मेरा हो गया और उनके इस दोस्ताना विश्वास को मनोज कुमार ने भी सहर्ष अनुमति दे दी थी। दरअसल देवसाहब के बारे में कहा जाता है कि वे रील लाइफ ही नहीं रियल लाइफ के भी हीरो थे।

 देवसाहब की सोच का जादू बहुत ग्लोबल था 

 देवसाहब की सोच का जादू बहुत ग्लोबल था इसका प्रमाण गाइड फिल्म से समझी जा सकती है। इस फिल्म को देवसाहब ने हिन्दी और अंग्रेजी में बनाने का फैसला किया था और रोजी के चरित्र के लिए वहीदा रहमान को लेने का विचार किया था। इस फिल्म को सत्यजीत रे भी बनाना चाहते थे और उन्होंने भी रोजी के चरित्र के लिए वहीदा रहमान को लेने का विचार किया था। गाइड जब बनकर रिलीज हुई थी तो उससे सामान्य फिल्मों की तरह रिस्पांश मिला था लेकिन समय बीतने के साथ इस फिल्म को महान फिल्मों में गिना जाता था। 

इंसान को रोमांटिक होना चाहिए
 देव साहब बॉलीवुड के ऐसे पहले हीरो थे जिन्होंने फिल्म हम दोनों में डबल रोल किया था , इससे पहले इस तरह हिन्दी फिल्मों में ऐसा किसी नायक ने नहीं किया था। दरअसल देवसाहब को नए पन से बहुत लगाव था और काम उनके लिए मेहबूबा की तरह था जिससे वे बेहद मोहब्बत किया करते थे। वे कहते भी थे कि इंसान को रोमांटिक होना चाहिए अगर इंसान रोमांटिक नहीं है तो उसे कोई हक नहीं की वो फिल्म बनाए। देव साहब ने नई प्रतिभाओं को अवसर दिया था जिसमें महान कलाकर गुरुदत्त को बाजी जैसी फिल्म से ब्रेक देना हो या फिर जीनत अमान और टीना मुनिम जैसे अभिनेत्रियों की प्रतिभा की पहचान कर उनको अवसर देना।

अभी ना जाओ छोड़कर कि दिल अभी भरा नहीं..
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 मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया। हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया गीत के बोल की तरह देव साहब ने भी जिंदगी का साथ बखूबी निभाया, उनके काम की लगन के आगे उम्र भी छोटी पड़ गई, रिटायरमेंट जैसा शब्द तो उनकी जिंदगी की डिक्शनरी में जैसे था ही नहीं। लंदन में दिल का दौरा पड़ने से देव साहब के निधन से हर सिनेप्रेमी गमजदा है और हर कोई बस यहीं कह रहा है अभी ना जाओ छोड़कर कि दिल अभी भरा नहीं...।
Rajesh Yadav

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