
फिल्म समीक्षा : लक
निर्देशक : सोहम शाह
संगीत : सलीम - सुलेमान
कलाकार : संजय दत्त, इमरान खान, श्रुति हसन, मिथुन चक्रवर्ती ,डैनी, रवि किशन,चित्रांशी
निर्माता : ढिलिन मेहता
फिल्म निर्देशक सोहम शाह ने जिंदगी के सच को बड़े करीब से समझने का प्रयास कर बेहतरीन पटकथा को आधार बनाकर फिल्म लक का निमार्ण किया। दरअसल लंबे समय बाद बॉक्स ऑफिस पर ऐसी फिल्म आई हैं जिसमें कुछ नयापन है और जो मानव अवचेतन मन और उसकी सोच पर आधारित है। दरअसल हार और जीत दो ऐसे शब्द हैं जिसमें अपने समय का सच छुपा होता है, जिसमें जीत का उल्लास और हार की टीस भी होती है। कुछ लोग दुनिया में इतने किस्मत वाले होते है कि वो जो कुछ भी करें वह अच्छा हीे होता है और जिंदगी की बाजी का हर पत्ता उनके हिसाब से चलता है।
ऐसे ही लोगों को आधार बनाकर सोहम शाह ने फिल्म लक का निमार्ण किया है।
फिल्म की कहानी में मूसा (संजय दत्त)ने दुनिया के सबसे लकी लोगों की जिंदगी को दाव पर लगाता है और जीतने वालों को करोड़ो रुपये देने की बात कहता है।
वह मानता है कि दुनिया में लक काम करता है और दिल से खेलने वाला कभी नहीं हारता है बस इंसान को अपनी किस्मत अजमाने का साहस होना चाहिए। जिंदगी और मौत के इस खेल में राम मेहरा (इमरान खान )मेजर जावर सिंह (मिथुन चक्रवर्ती), और नताशा (श्रुति हसन) , राघव (रवि किशन) को लाखन (डैनी ) मूसा के कहने पर एक जगह लाता है और फिर शुरु होता है लक का सबसे बड़ा खेल।
पूरी फिल्म में खास बात फिल्म की पटकथा और बेहतरीन संवाद का होना है जिसके सहारे फिल्म आगे बढ़ती है। कलाकारों में इमरान, मिथुन, रवि किशन, श्रुति और चित्रांशी ने शानदार अभिनय किया है वहीं मूसा के रोल में संजय दत्त ने अपने ही अंदाज में बिंदास नजर आए है। चक दे इंडिया में अपने बेहतरीन अभिनय के बाद चित्रांशी ने इस फिल्म में शार्टकट नामक चरित्र में प्रभाव छोड़ा है।
गीत - संगीत इस एक्शन प्रधान फिल्म में कम है लेकिन जो भी मौका संगीतकार सलीम सुलेमान को दिया गया है उसके साथ उन्होंने बेहतरीन न्याय किया है। हालांकि फिल्म शुरुआत के प्रथम भाग में जिस कसावट के साथ आगे बढ़ती है उसका अंत उतना रोमांचक नहीं हो पाता है जो दर्शक को अखरता है। गीत संगीत की मधुरता थोड़ी और होती तो फिल्म में थोड़ा और निखार आ सकता था।
यह फिल्म बताती है कि किस्मत अच्छी या बुरी हो सकती है लेकिन इसे बेहतर वहीं समझता है जिसकी किस्मत अच्छी या बुरी हो हम कभी इसे हार तो कभी जीत कहकर पुकारते है। और सबसे बड़ी बात जीतने वाले भले कुछ हटकर होते हैं लेकिन उनका गुड लक हमेशा उनके साथ होता है क्योंकि वो अवसर की पहचान करना जानते है।
देखने योग्य ***1/2
निर्देशक : सोहम शाह
संगीत : सलीम - सुलेमान
कलाकार : संजय दत्त, इमरान खान, श्रुति हसन, मिथुन चक्रवर्ती ,डैनी, रवि किशन,चित्रांशी
निर्माता : ढिलिन मेहता
फिल्म निर्देशक सोहम शाह ने जिंदगी के सच को बड़े करीब से समझने का प्रयास कर बेहतरीन पटकथा को आधार बनाकर फिल्म लक का निमार्ण किया। दरअसल लंबे समय बाद बॉक्स ऑफिस पर ऐसी फिल्म आई हैं जिसमें कुछ नयापन है और जो मानव अवचेतन मन और उसकी सोच पर आधारित है। दरअसल हार और जीत दो ऐसे शब्द हैं जिसमें अपने समय का सच छुपा होता है, जिसमें जीत का उल्लास और हार की टीस भी होती है। कुछ लोग दुनिया में इतने किस्मत वाले होते है कि वो जो कुछ भी करें वह अच्छा हीे होता है और जिंदगी की बाजी का हर पत्ता उनके हिसाब से चलता है।
ऐसे ही लोगों को आधार बनाकर सोहम शाह ने फिल्म लक का निमार्ण किया है।
फिल्म की कहानी में मूसा (संजय दत्त)ने दुनिया के सबसे लकी लोगों की जिंदगी को दाव पर लगाता है और जीतने वालों को करोड़ो रुपये देने की बात कहता है।
वह मानता है कि दुनिया में लक काम करता है और दिल से खेलने वाला कभी नहीं हारता है बस इंसान को अपनी किस्मत अजमाने का साहस होना चाहिए। जिंदगी और मौत के इस खेल में राम मेहरा (इमरान खान )मेजर जावर सिंह (मिथुन चक्रवर्ती), और नताशा (श्रुति हसन) , राघव (रवि किशन) को लाखन (डैनी ) मूसा के कहने पर एक जगह लाता है और फिर शुरु होता है लक का सबसे बड़ा खेल।
पूरी फिल्म में खास बात फिल्म की पटकथा और बेहतरीन संवाद का होना है जिसके सहारे फिल्म आगे बढ़ती है। कलाकारों में इमरान, मिथुन, रवि किशन, श्रुति और चित्रांशी ने शानदार अभिनय किया है वहीं मूसा के रोल में संजय दत्त ने अपने ही अंदाज में बिंदास नजर आए है। चक दे इंडिया में अपने बेहतरीन अभिनय के बाद चित्रांशी ने इस फिल्म में शार्टकट नामक चरित्र में प्रभाव छोड़ा है।
गीत - संगीत इस एक्शन प्रधान फिल्म में कम है लेकिन जो भी मौका संगीतकार सलीम सुलेमान को दिया गया है उसके साथ उन्होंने बेहतरीन न्याय किया है। हालांकि फिल्म शुरुआत के प्रथम भाग में जिस कसावट के साथ आगे बढ़ती है उसका अंत उतना रोमांचक नहीं हो पाता है जो दर्शक को अखरता है। गीत संगीत की मधुरता थोड़ी और होती तो फिल्म में थोड़ा और निखार आ सकता था।
यह फिल्म बताती है कि किस्मत अच्छी या बुरी हो सकती है लेकिन इसे बेहतर वहीं समझता है जिसकी किस्मत अच्छी या बुरी हो हम कभी इसे हार तो कभी जीत कहकर पुकारते है। और सबसे बड़ी बात जीतने वाले भले कुछ हटकर होते हैं लेकिन उनका गुड लक हमेशा उनके साथ होता है क्योंकि वो अवसर की पहचान करना जानते है।
देखने योग्य ***1/2
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