
हरियाणा के झज्जर जिले में रहने वाले रविंद्र गहलोत ने खुशी पूर्वक शिल्पा नामक लड़की से विवाह किया। इस विवाह से दोनों परिवार के लोग और नवदंपत्ति बेहद खुश थे। लेकिन यह तस्वीर का एक पहलू है। इस विवाह का दूसरा पहलू ढराणा गांव की पंचायत का एक फैसला है जिसने रविंद्र और शिल्पा को पति -पत्नी न मानकर भाई बहन बता दिया है और उनको यह विवाह तोड़ने के लिए फरमान जारी कर दिया है।
दरअसल ढणना गांव की पंचायत का कहना है कि चूंकि शिल्पा कादियान गोत्र की है और यह गांव के गोत्र से मिलता है इसलिए वह गांव की बेटी हुई और इस लिहाज से यह विवाह अवैध है और दोनों को तलाक लेना होगा। गांव के लोगों के अनुसार कादियान और गहलोत गोत्र का आपस में भाईचारा इसलिए यह विवाह मान्य नहीं हो सकता लेकिन शिल्पा और रविंद्र अपने रिस्ते को लेकर अडिग है और दोनों ने तलाक लेने से साफ इंकार कर दिया है। अब पंचायत का कहना है कि रविंद्र को परिवार सहित गांव छोड़ना ही होगा। उधर इस पूरे मामलें पर प्रशासन पंचायत के लोगों को मनाने का प्रयास कर रहा है।
पंचायती राज का डंका पीटने वालों के लिए ढणना गांव की दकियानूसी सोच से धक्का जरूर लगा होगा। अरे भाई जब रविद्र और शिल्पा के गोत्र आपस में अलग है तो गांव के अन्य लोगों का गौत्र लड़की से मिलना कोई अपराध तो है नहीं। लड़का और लड़की बालिग है, उनके विवाह से दोनों परिवार के लोग सहमत है तो यह विवाह कानूनी रुप से तो मान्य है। लेकिन पंच परमेश्वर ने अपना फैसला सुना दिया है और इस विवाह को अमान्य कर दिया है। पंचायत के फैसलों से आहत होकर रविंद्र ने जहर खाकर जान देने की कोशिश भी की थी। ईश्वर का शुक्र है वह सही सलामत है लेकिन अगर उसे कुछ हो जाता तो इसके लिए दोषी कौन होता?
सवाल उठता है कि इस पूरे मामलें में दोष किसका है? और क्या पंचायत को अपने फैसले पर विचार नहीं करना चाहिए? क्या जीने का अधिकार देने वाली सरकार इसे केवल एक समाजिक समस्या मानकर मूकदर्शक रहकर देखती रह सकती है? आखिर इस पूरे प्रकरण पर किस प्रकार का फैसला होना चाहिए?
RAJESH YADAV
टिप्पणियाँ
वैक्तिक स्वतंत्रता के नाम पर देश और समाज के नियमों की अवहेलना आधुनिकता का शगल बन गया है. कल को मैं कहूं कि मैं तो AK -४७ रखना चाहता हूँ. मैंने अपने पैसे से खरीदी है तो इसमें किसी को क्यों ऐतराज होना चाहिए??
इसी तरह कि अन्य मांगे भी वैक्तिक स्वतंत्रता के नाम पर उठ सकती हैं. समाज और देश नियम -कानूनों से ही बनते हैं. पुरानी रूढियों को छोड़ना सही है परन्तु हर नियम को ताक पर रख देना सही नहीं...