खेलें हम जी जान से : इस जज्बे को आप जी जान से चाहेंगे



रेटिंग : ४


निर्देशक : आशुतोष गोवारीकर

कलाकार : अभिषेक बच्चन, दीपिका पादुकोण, सिकंदर खेर, विशाखा सिंह

निर्माता : सुनीता गोवारीकर ,अजय बिजली , संजीव के। बिजली

संगीत : सोहेल सेन

बैनर : आशुतोष गोवारीकर प्रोडक्शन्स, पीवीआर पिक्चर्स

लगान और जोधा अकबर जैसी सफल फिल्म बना चुके निर्देशक आशुतोष गोवारीकर की फिल्म खेले हम जी जान से एक बेहतरीन फिल्म है। यह एक ऐसी फिल्म है जिसकी स्टोरी लाइन शानदार है , सिनेमैटोग्राफी कमाल की है। दरअसल इस फिल्म को उन गुमनाम शहीदों के प्रति सच्ची श्रंद्धाजलि कहना चाहिए जिन्होंने १८ अप्रैल १९३क् को चिटगांव में अग्रेंजो के खिलाफ विद्राह की क्रांति का आगाज किया था। यह एक ऐसी फिल्म है जिसे सभी भारतीयों को जरूर देखना चाहिए । फिल्म मानिनि चटर्जी की किताब डू एंड डाई द चिटगांव अपराइजिंग 1930-1934पर आधारित है। फिल्म की पटकथा, कलाकारों का अभिनय और सबसे खास बात फिल्म का संपादन उम्दा है। फिल्म कुछ लंबी जरूर है लेकिन इसकी कहानी जिस रफ्तार से आगे बढ़ती है उसमें एक रोचकता है।


फिल्म में अभिषेक बच्चन, दीपिका पादुकोण, विशाखा सिंह के अलावा नए कलाकारों ने भी बेहतरीन अभिनय किया है, यहां आपको फिल्म निर्देशक आशुतोष गोवारीकर की तारीफ करनी होगी। दअसल आशुतोष ने जिस तरह से लगान में कलाकारों की एक पूरी टीम से बेहतरीन अभिनय करवाने में सफल रहे थे वैसा ही कुछ इस फिल्म को देखने पर लगता है और हर पात्र अपने अभिनय के साथ उभरकर सामने आता है। सिंकदर खेर ने उम्दा अभिनय किया है और कुछ बाल कलाकारों ने अपनी उम्र के हिसाब से जिस तरह अपने चरित्र को जिया है वह कमला का है और यहीं फिल्म निर्देशक आशुतोष गोवारीकर का जादू है, इस बात के लिए उनको साधुवाद दिया जाना चाहिए।


फिल्म की कहानी 18अप्रैल 1930की रात चिटंगाव के उस विद्राह पर आधारित है जिसमें सूज्र्या सेन या सूर्या (अभिषेक बच्चन) अपने कुछ दोस्तो और 56अन्य किशोरों के साथ अंग्रेजों के खिलाफ विद्राह कर उनके अलग अलग कई ठिकानों पर एक साथ हमला कर देते हैं। सूज्र्या सेन भारतीय गणतंत्र सेना बनाकर देश की आजादी के लिए प्रयास करते हैं उनकी सोच से प्रभावित होकर 56किशोर उस वक्त उनके रास्ते पर चल निकलते है जब अंग्रेज उन किशोरों से उनके खेल के मैदान को छीन लेते हैं। कल्पना दत्ता (दीपिका पादुकोण) प्रीति(विशाखा सिंह)भी इस आंदोलन का हिस्सा बनती है। वे अपने इस विद्रोह में उतने सफल तो नहीं होते लेकिन आजादी पाने के लिए एक ऐसा जज्बा भरने में सफल हो जाते है जिसकी उस समय देश को बहुत जरूरत रहती है। सत्य घटना पर आधारित इस फिल्म को बहुत ईमानदारी के साथ बनाया गया है।


फिल्म की अवधि थोड़ी सी लंबी है और शुरु में इसकी रफ्तार भी कुछ कम है। मध्यांतर के बाद फिल्म में तेजी तो आती है लेकिन यहां फिल्म की पटकथा थोड़ी सी लंबी खींच गई है , इसके बावजूद फिल्म दर्शक को निराश नहीं करती। यह एक ऐसी फिल्म है जो देश प्रेम की बात करती है और अपने समयकाल की सच्ची अभिव्यकित है। गुमनाम शहादत को दिखाती इस सार्थक कोशिश को सलाम करते हुए सरकार को भी इस फिल्म को टैक्स फ्री घोषित कर देना चाहिए, जिससे कि अधिक से अधिक दर्शक इस फिल्म को देख सके।
राजेश यादव

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