लम्हा : खूबसूरत फिल्म का जुदा अंदाज

बेहतरीन सिनेमेटोग्राफी, लाजवाब संवाद के साथ अपने समय के सच को कहती फिल्म लम्हा एक सार्थक प्रयास है। फिल्म निर्देशक राहुल ढोलकिया ने इस फिल्म को बनाने के लिए जी-तोड़ मेहनत की है। बिपासा बासु ने अजीजा के रोल में बेहतरीन अभिनय किया है और संजय दत्त भी अपनी पहचान के अनुरूप शानदार नजर आए हैं। फिल्म उन लम्हों की कहानी है जिसमें दर्द के मंजर से जुड़ी कई कहानियां है, आतंक की गिरफ्त में जकड़े हुए कश्मीर के दर्द को समझने का एक प्रयास।

फिल्म का पहला भाग बेहद खूबसूरत बन पड़ा है और हर लिहाज से बेहतर है। कहानी के बीच में जिस तरह से गीतों को इस्तेमाल किया गया है वह फिल्म की संवेदनशीलता को बताता है। सईद कादरी ने बेहद खूबसूरत बोल लिखे हैं जो फिल्म की खूबसूरती को बढ़ा देते हैं। हालांकि फिल्म का अंत और बेहतरीन हो सकता था लेकिन एके-47से निकली गोली के शोर में खोए हुए बचपन की संवेदनशीलता को बताने के प्रयास की तारीफ की जानी चाहिए।
फिल्म कहती है कश्मीर कुछ लोगों के लिए एक कंपनी बन चुका है और शांति की राह में आतंकवादियों के साथ साथ ऐसे लोग भी जिम्मेदार है। यह फिल्म कश्मीर की महिलाओं की जिंदगी से जुड़ी संवेदनशीलता को भी बताती है और कहती है उनकी खूबसूरत आंखों में एक आक्रोश है और अपनों के खोने का दर्द भी। फिल्म में अजीजा का किरदार इस बात की तरफ इसारा करता है। लश्कर -ए -तैयबा को जम्मू कश्मीर में अंशांति फैलाने के लिए हरसंभव प्रयास करते हुए दिखाया गया है जिनके लिए एक 47 का मतलब ही आजाद कश्मीर1947 से है।

फिल्म फिल्म में संजय दत्त विक्रम नाम के एक ऐसे किरदार में नजर आए हैं जो आतंकवादियों के नापाक इरादों को नाकाम करने के लिए अंडर कवर एजेंट (गुल जहांगीर) के रूप में कश्मीर जाता है। वहीं अनुपम खेर (हाजी शाह) के रोल में नजर आए हैं जो 1989 खौफनाक मंजर को फिर दोहराना चाहते हैं और चुनावों का बहिष्कार करते हैं।

कुणाल कपूर ने सुधारवादी नेता का रोल किया है और वह फिल्म में सुधारवादी नेता के रूप में लोकतंत्र के हिमायती नजर आए हैं। फिल्म देखे जाने योग्य है और यह एक सार्थक प्रयास है। इसे कम से कम एक बार तो अवश्य देखना चाहिए।

राजेश यादव