ब्रश और कैनवस को मकबूल थे केवल हुसैन




संसार ने चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन का भारत का पिकासो कहा, लोगों ने उसे ब्रश का बादशाह भी कहकर पुकारा लेकिन अगर कोई उनके मन को समझा तो वे थे उनके ब्रश और वह कैनवस जिस पर उन्होंने अपनी सोच का उतार दिया जैसी देखी दुनिया, जो मन ने सुना, जो दिल तक कर गया असर और वह सब कुछ जो बालमन से बड़े होने तक अवचेतन मन पर जादू करता गया।




वह एक पेंटिंग से हजार शब्दों से बातें करते थे , जिसे देखकर कुछ लोग बस मत्रमुग्ध हो जाते थे लेकिन कुछ ऐसे भी थे जो उनको समझ नहीं पाए उस सोच में एक बात थी जिसने उनको भारत ही नहीं संसार में ख्याती दी और उनकी इसी मौलिक सोच और अभिव्यक्ति ने उनको विवादास्पद भी बनाया, इस कदर कि अपना वतन छोड़कर दूसरे वतन की नागरिकता लेनी पड़ी, जन्में भारत के महाराष्ट्र जिले में और जिंदगी को अलविदा कहकर मौत से दोस्ती का सिलसिला शुरू हुआ कतर में जहां दिल का दौरा पड़ा और हुसैन निकल पड़े अंनत यात्रा पर॥जाते तो सब है लेकिन आज उस ब्रश और उस कैनवस का दर्द कुछ गहरा है जिनके माध्यम से हुसैन अपने विचारों को पेंटिंग पर कैनवस पर उतार देते थे।


ब्रश और पेंटिग तो उनके स्पर्श के जादू से सम्मोहित थे लेकिन वे आज बेहद अकेले हैं अपनी यादों के साथ क्योंकि चित्रों को आकार देने वाला चितेरा चला गया है। ब्रश और कैनवस ही तो थे जिन्होंने मकबूल फिदा हुसैन को समझा, वह हर जादू जिसे मकबूल ने समझा, जिया और संसार को अपनी पेंटिग के माध्यम से बनाया॥ ।



राजेश यादव

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