दबंगों के खिलाफ इंसाफ की जंग : नो वन किल्ड जेसिका


फिल्म समीक्षा : नो वन किल्ड जेसिका
बैनर : यूटीवी स्पॉट बॉय
निर्माता : रॉनी स्क्रूवाला
निर्देशक : राजकुमार गुप्ता
संगीत : अमित त्रिवेदी
कलाकार : रानी मुखर्जी, विद्या बालन
सेंसर सर्टिफिकेट :
रेटिंग 3
एक बड़े महानगर में घटित घटना का बड़ा सच, कानून की किताब में इंसाफ का तकाजा और आम आदमी की आवाज को उसके वास्तविक अंदाज में परदे पर दिखाने का साहसिक काम निर्देशक राजकुमार गुप्ता ने नो वन किल्ड जेसिका में कर दिखाया है। आमिर के बाद नो वन किल्ड जेसिका में एक बार फिर कैलेंडर में अकिंत अपने समय का सच खुलकर बड़े परदे पर दर्शक के सामने आता है। बॉलीवुड बदल रहा है और सच को दिखाने का जो नजरिया हमारे युवा निर्देशकों के पास है वह एक संभावना को दिखाता है। बेहतरीन पटकथा, उम्दा बैगग्राउंड म्यूजिक, विद्या बालन और रानी मुखर्जी के बेहतरीन अभिनय ने इस फिल्म की सबसे खास बात है।

मीडिया और दिल्ली की जनता ने जेसिका मर्डर केस में इंसाफ के लिए सबरीना के साथ जो पुकार लगाई उसे इस फिल्म में बेहतरीन अंदाज में दिखाया गया है। एक घटना जिसकी खबरें आप ने अखबारों में पढ़ी, टीवी पर देखी हो उसे नए अंदाज में इतनी खूबसूरती से बनाया गया है कि हर सीन आप से बात करता है और हर संवाद आप से कुछ कहता है। विद्या बालन के खामोश अभिनय में चेहरे पर आते भाव और बोलती आंखे एक सवाल करती है क्या हमारे देश वास्तव में जिंदगी इतनी सस्ती है? क्या जिंदगी की कीमत एक पैग से भी सस्ती है?

दक्षिण दिल्ली की एक हाईप्रोफाइल पार्टी में जेसिका (मायरा खान) को एक बड़े राजनेता का बेटा सिर्फ इसलिए गोली मार देता है क्योंकिकि उसको ड्रिंक का एक पैग नहीं मिलता। ३क्क् लोगों की इस हाईप्रोफाइल पार्टी में एक आदमी गवाही देने के लिए आगे नहीं आता। ऐसे में जेसिका की बहन सबरीना (विद्या बालन) इंसाफ के लिए कानून का सहारा लेती है लेकिन इंसाफ को दबाने के लिए रिपोर्ट बदल दी जाती है, गवाह खरीद लिए जाते है, कभी डर से तो कभी दौलत से और कानून की चौखट से अपराधी सबूत के अभाव में बरी हो जाता है। इस स्तब्ध खामोशी के बीच टीवी चैनल की पत्रकार मीरा गैटी (रानी मुखर्जी) अपने मुखर अंदाज में जिस तरह से पूरी घटना का पर्दाफास करती है वह बेजोड़ है और एक उम्मीद जगाता है। पत्रकार की जिस भूमिका को रानी ने जिया है वह बेहद बिंदास और रौबदार है , वह गालियां देने में भी नहीं हिचकती और एक पत्रकार के रूप में जो पैशन होना चाहिए वह मीरा के किरदार में निखर कर आता है।

अमित त्रिवेदी ने बेहतरीन बैगग्राउंड संगीत दिया है और उनकी तारीफ की जानी चाहिए। हिन्दी सिनेमा में बदलाव की बयार बह रही है और इस फिल्म की पटकथा इस बात का सबूत है। हालांकि कुछ गालियों और एक दो बोल्ड सीन के चलते फिल्म को ए सर्टिफिकेट दिया गया है। बोल्ड सीन से बचा जा सकता था फिर भी जेसिका के इंसाफ की लड़ाई जिस अंदाज में सबरीना के साथ मीडिया और जनता ने लड़ा है उसे देखने के लिए इस फिल्म को देखा जा सकता है।
राजेश यादव

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