पीपली लाइव : गांव का सच और जिंदगी की जिद



रेटिंग : ****
निर्माता : आमिर खान, किरण राव
निर्देशक : अनुषा रिजवी
संवाद : अनुषा और फारुकी
कलाकार : रघुवीर यादव, ओंकार दास माणिकपुरी , शालिनी वत्स, फारुख जफर, नवाजुद्दीन सिद्दकी,
संगीत : इंडियन ओशन, राम संपत, नगीन तनवीर
सिनेमैटोग्राफर : शंकर रमन
* केवल वयस्कों के लिए



पीपली लाइव केवल एक फिल्म भर नहीं है यह एक ऐसा आईना है जिसमें एक गांव की एक ऐसी तस्वीर है जो हमारे देश के नेता, ब्यूरोक्रेसी और मीडिया से सवाल कर रही है। यह फिल्म इस बात का भी जवाब है कि एक फिल्म के लिए सबसे जरूरी उसकी स्टोरी लाईन है न कि बड़ी स्टॉर कॉस्ट। फिल्म की निर्देशिका अनुषा रिजवी ने अपनी पहली ही फिल्म से कहानी कहने के अंदाज को कैमरे की भाषा के माध्यम से बेजोड़ अंदाज में दिखाया है और इस अंदाज के लिए उनको साधुवाद दिया जाना चाहिए।



हिन्दी सिनेमा जगत को इस बात का शुक्रगुजार होना चाहिए कि आमिर खान ने बॉलीवुड के बाजारवादी गणित से परे हटके इस फिल्म से एक प्रोड्च्यूसर के रूप में जुड़े। न जाने ऐसी कौन सी बात है कि आमिर खान जिस फिल्म से जुड़ जाएं वह अपना रंग जमा देती है और ऐसा ही रंग पीपली लाइव का लोगों के दिलों पर छाने जा रहा है। भारतीय सिनेमा में इन दिनों गांवों पर कम फिल्म बन रही थी लेकिन पीपली लाइव से गांव के मिट्टी की सुगंध की फिर वापसी हो गई है।



दरअसल फिल्म की कहानी का गांव से जुड़ा होना, उसमें लोकगीतों की महक और सीधे साधे लोगों की सच्ची जीवंत दास्तान में वह सब कुछ है जो लोगों से सीधे जुड़ाव स्थापित करता है। फिल्म में व्यंगात्मक लहजे में एक कड़वे सच का सहारा लेते हुए सरकारी योजनाओं, राजनेताओं और मीडिया की टीआरपी दौड़ पर निर्देशिका ने कड़ा प्रहार किया है। चोला माटी के राम॥एकर का भरोसा और महंगाई डायन खाय जात है ..जैसे गीतों से सजीं पीपली लाइव अपने सच के साथ दर्शकों का भरपूर मनोरंजन करने में सक्षम है। फिल्म में संवाद बेहतरीन है हालांकि कुछ स्थानों पर गालियों के प्रयोग के कारण सेंसर बोर्ड ने इसे ए प्रमाणपात्र से नवाजा है।



फिल्म की कहानी पीपली नामक छोटे से गांव की है जहां के लोग गरीबी से तंगहाल है और कर्ज में डूबे हुए है। फिल्म (बुधिया रघुवीर यादव), नत्था (ओमकार दास माणिकपुरी) की कहानी कहती है। दोनों बैंक में कर्ज से डूबे होने के कारण परेशान है । मीडिया से लेकर राजनेताओं तक के दौरे पीपली तक शुरु हो जाते है । सरकारी योजनाओं में आत्महत्या से मरे हुए किसान को सहायता देने की बात जानकर बुधिया नत्था को सलाह देता है कि आत्महत्या करने पर कुछ पैसा मिल सकता है। इस बात को स्थानिय पत्रकार सुन लेता है और अगले दिन यह एक बड़ी खबर होती है। बस इसके बाद पीपली गांव मीडिया और राजनेताओं की नजर में आ जाता है और फिल्म में कई ट्विस्ट आते है और एक संदेश के साथ फिल्म अपनी बात कह जाती है।



जहां तक अभिनय की बात है तो रघुवीर यादव ने बुधिया और ओंकार दास ने नत्था के रोल में शानदार काम किया है। इसके साथ ही शालिनी वत्स, मलाइका शिनॉय और फारूख जफर ने भी प्रभावी अभिनय किया है। फिल्म का हर किरदार अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहा है। फिल्म निर्देशिका अनुषा रिजवी ने पीपली लाइव में प्रभावी निर्देशन किया है वहीं फिल्म की सिनेमैटोग्राफी में शंकर रमन ने गांव को बहुत खूबसूरत अंदाज में दिखाया है।



बड़े -बड़े महानगरों और उनकी छाती पर उगे हुए होटल ,बार और चमचमाते भवनों में जिंदगी की रंगीनियत और फील गुड फैक्टर अलग होता है और उस महानगर से 20से २५ किलोमीटर दूर पीपली जैसे गांवों में जिंदगी का दूसरा स्याह सच छुपा होता है। देश में ऐसे कई गांव है पीपली और नत्था तो उसके प्रतीक मात्र है। उनके संदेश को देखें और महानगर और टाउन के बीच गांव की मोहक माटी का गीत भी सुने ताकि जिंदगी वहां भी गुलजार हो जाए। दरअसल फील गुड फैक्टर से चमचमा रहे विकासमान महानगरी संस्कृति पर करारा व्यंग है पीपली लाइव। यह उन लोगों के लिए भी एक जवाब है जो कहते है कि गांव का आदमी शहर की तरफ क्यों आता है। फिल्म देखने जाएं और नत्था की जिंदगी की देखें जिसमें जीवंत सच छुपा हुआ है।

राजेश यादव

टिप्पणियाँ

Rahul Singh ने कहा…
आशा है पीपली में छत्‍तीसगढ़ akaltara.blogspot.com पर देखना आपको रोचक लगेगा.