कमजोर कहानी, स्टाइलिश लुक


** 1/२ आयशा
निर्देशिका : राजश्री ओझा
निर्माता : अनिल कपूर, रिया कपूर, अजय बिजली,
कलाकार : सोनम कपूर, अभय देओल, इरा दुबे, अमृता पुरी, साइरस साहुकार, एम के रैना,
गीतकार : जावेद अख्तर
संगीत : अमित त्रिवेदी


फिल्म आयशा से बॉलीवुड में एक और महिला निर्देशिका राजश्री ओझा का आगमन हो गया है। जेन ऑस्टिन के उपन्यास एम्मा से प्रेरित होकर इस फिल्म की पटकथा लिखी गई है। फिल्म के पात्र आधुनिक युवा पीढ़ी की जीवन शैली को जीते हैं जिसमें प्यार के जज्बात तो हैं ही साथ ही युवा मन की उड़ान भी है। फिल्म की पटकथा कमजोर है लेकिन फिल्म से जुड़े कलाकारों के परिधान उनकी लाइफ स्टाइल सब बहुत हाई-फाई है। अगर कुछ कमजोर है तो फिल्म की पटकथा और उसकी रफ्तार। सोनम कपूर फिल्म में बेहद खूबसूरत लगी हैं लेकिन उनका अभिनय उतना प्रभावित नहीं करता जिसकी उम्मीद उनके प्रशंसकों को इस फिल्म से है। सांवरिया और आई हेट लव स्टोरिज में अपने अभिनय का जादू जगाने वाली सोनम कपूर का स्टाइल इस फिल्म में थोड़ा सा हटकर ही कहा जा सकता है।


फिल्म में आयशा कपूर (सोनम कपूर)एक ऐसी लड़की है जो दूसरों के मैच मेकर में रूची रखती है। वह बहनजी टाइप दिखने वाली लड़की शैफाली (अमृता पुरी) की लाइफ स्टाइल बदल देना चाहती है ताकि रणधीर (साइरस साहुकार) उसे पंसद कर ले। इधर रणधीर शैफाली को प्रपोज न कर आयशा को ही प्रपोज कर देता है। आयशा रणधीर से नाराज हो जाती है, दरअसल आयशा अपने दोस्त अजरुन (अभय देओल) से प्यार करती है लेकिन दोनों की सोच में अंतर होता है और वे एक दूसरे से अपने प्रेम का इजहार नहीं करते।


फिल्म का घटनाक्रम प्रेम की तलाश में यूं ही आगे बढ़ता है और अतत: शैफाली अपने सच्चे प्रेम को खुद खोज लेती है उसी तरह पिंकी आयशा की दोस्त रणधीर में अपने प्यार को खोज लेती है, इन प्रेम कहानियों के बीच आयशा भी अपनी जिंदगी की कहानी को आगे बढ़ाती है। फिल्म कहती है कि कुछ लोग आसमान में सितारों के अनगिनत संसार को देखकर खुश हो जाते हैं तो कुछ आसमान में एक सितारे को देखकर ही उसे अपना मान खुश हो लेते है। जावेद अख्तर के लिखे गीतों के बोल सुंदर है और फिल्म का संगीत उम्दा है और देव डी में अलग तरह के संगीत से चर्चा में आए अमित त्रिवेदी ने खूबसूरत संगीत दिया है। हालांकि फिल्म निर्देशिका ने फिल्म को एक स्टाइलिश लुक देने का भरपूर प्रयास किया है लेकिन अजरुन अभय देओल के चरित्र को बेहद कमजोर कर दिया है।


अमृता पुरी ने शैफाली के किरदार को बहुत उम्दा अंदाज में परदे पर जिया है और उनके लिए यह एक अच्छी शुरुआत कही जा सकती है। इसे आप कूल और स्टाइलियश परिधानों वाली फिल्म कह सकते है जो इस बात की तरफ सकेंत करती है कि धूप का टुकड़ा बेहद हसीन होता है लेकिन यह सबकी किस्मत में नहीं होता कुछ लोग इसे खो देते है तो कुछ अपने हिस्से के इस प्यार को खोज लेते है।

राजेश यादव

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