फिल्म समीक्षा : ‘वंस अपॉन ए टाइम इन मुंबई’


रेटिंग : ***
बैनर : बालाजी मोशन पिक्चर्स

निर्देशक : मिलन लुथरिया

निर्माता : एकता कपूर, शोभा कपूर

संगीत : प्रीतम चक्रवर्ती
कलाकार : अजय देवगन, कंगना, इमरान हाशमी, प्राची देसाई, रणदीप हुडा, गौर खान


निर्देशक मिलन लुथरिया की फिल्म ‘वंस अपॉन ए टाइम इन मुंबई’ 7० के दशक के फिल्मों की याद ताजा कर देती है। फिल्म की कहानी साधारण है लेकिन इसके दो चरित्र लार्जर देन लाइफ का पुट लिए हुए है। अजय देवगन ने हाजी मस्तान से प्रेरित चरित्र सुल्तान मिर्जा और इमरान हाशमी ने दाउद इब्राहिम से प्रेरित किरदार शोएब को परदे पर निभाया है।

हालांकि फिल्म निर्देशक इस बात का दावा जरूर करते है कि फिल्म की कहानी किसी व्यक्ति से नहीं मिलती लेकिन समुद्र से प्यार करने वाले और मुंबई को अपनी मेहबूबा मानने वाले सुल्तान मिर्जा के चरित्र में हाजी मस्तान की झलक मिलती है। फिल्म की पटकथा शानदार है और अजय देवगन का अभिनय देखने लायक है।

फिल्म की कहानी मुंबई के अपराध जगत से जुड़ी है जहां सिर्फ सुल्तान मिर्जा (अजय देवगन) का राज चलता है। सुल्तान मिर्जा स्मगलिंग के धंधे में अपने वसूलों के तहत काम करता है, सरकार की उसे बेशक परवाह नहीं लेकिन वह उन चीजों से दूर रहता है जिसे करने की गवाई उसका जमीर नहीं देता। वह रेहाना (कंगना)नाम की बॉलीवुड अदाकार से मोहब्बत भी करता है और मुंबई में सुल्तान को पसंद करने वालों की संख्या भी अच्छी खासी को अगर कोई नहीं पसंद करता है तो वह मुंबई पुलिस और इंस्पेक्ट एग्नेल। मुंबई की अपराध की दुनिया उस वक्त बदलती है जब शोएब (इमरान हाशमी) सुल्तान का दिल जीत कर इस धंधे में प्रवेश करता है। वह सुल्तान जैसा बनाना चाहता है लेकिन वह धंधे के वसूल को बदलकर रख देना चाहता है। वह पूरे मुंबई पर राज करना चाहता है और सही और गलत उसके लिए कुछ मायने नहीं रखते हैं।वह उन कामों को भी करता है जिसे सुल्तान पसंद नहीं करता और यही बात सुल्तान को अखर जाती है और वह शोएब को तमाचा मारते हुए उसे अपने धंधे बंद करने को करता है। लेकिन शोएब इस बीच सुल्तान के दुश्मनों से जा मिलता है और जब सुल्तान राजनीति में उतरने का ऐलान कर रहा होता है उसी वक्त शोएब की गोली का शिकार हो जाता है।

यह फिल्म मुंबई पर राज करने वाले दो ऐसे बड़े किरदारों की जिंदगी पर बनीं है जिनकी सोच में जमीन -आसमान का अंतर है लेकिन दोनों ने ही इस शहर पर राज किया। एक ने शहर को मेहबूबा मानते हुए उसकर शांति से खिलवाड़ नहीं किया और समुद्र को अपना सबकुछ मान लिया और दूसरे ने इस शहर को गैंगवार, ड्रग्स और आतंक में झौक दिया, राज दोनों ने किया लेकिन सुल्तान मिर्जा का अंदाज मुंबई के लोगों को बहुत पसंद आया न कि शोएब का। सही और गलत में चुनना आसान होता है लेकिन दो गलत आदमी में सही का चुनाव करना बेहद मुश्किल काम, और यही भूल मुंबई पुलिस से हुई और फिल्म कहती है इसकी बड़ी महंगी कीमत मुंबई ने चुकाई, काश शोएब के स्थान पर सुल्तान को समझ पाती मुंबई पुलिस।


सुल्तान मिर्जा के किरदार में अजय देवगन का अंदाज शानदार है, उनकी चाल, पहनावा और दुआ में याद रखना कहने का स्टाइल बहुत उम्दा है। प्राची देसाई और कंगना ने अपने रोल के हिसाब से बेहतर काम किया है, खासकर कंगना फिल्म में बेहद खूबसूरत लगी हैं। फिल्म का संगीत ठीक -ठाक है और कुछ गीत बहुत मधुर बन पड़े है। फिल्म की कहानी कहने का अंदाज बहुत शानदार है और इसके लिए इसकी पटकथा की जितनी तारीफ की जाए कम है। फिल्म में एक स्पीड है और बहुत शानदार अंदाज में फिल्म की कहानी चलती है। मुंबई के अपराध जगत को एक अलग अंदाज में दिखाने की तारीफ की जानी चाहिए। फिल्म को देखकर ऐसा लगता है कि बॉक्स ऑफिस पर यह फिल्म बेहतर प्रदर्शन करेगी और इसे देखा जा सकता है।
राजेश यादव

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