फिल्म खट्टा -मीठा : कड़वा सच, मीठा हॉस्य


रेटिंग : * * *


निर्देशक :
प्रियदर्शन


संगीत : प्रीतम, शानी


कलाकार : अक्षय कुमार, त्रिशा कृष्णन, राजपाल यादव, मकरंद देशपांडे, नीरज वोरा, मिलिंद गुनाजी, असरानी, अरूणा ईरानी, उर्वशी शर्मा, मनोज जोशी, टीनू आनंद, कुलभूषण खरबंदा, जॉनी लीवरबैनर : हरि ओम एंटरटेनमेंट कंपनी, श्री अष्टविनायक सिनेविजन


फिल्म निर्देशक प्रियदर्शन की फिल्म खट्टा -मीटा में इस बार कॉमेडी के साथ -साथ व्यवस्था पर भी सवालिया निशान उठाया गया है। इस फिल्म को आप पूरी तरह से कॉमेडी फिल्म नहीं कह सकते। करेले के साथ मीठा का स्वाद लेने वालों को तो यह फिल्म पसंद आऐगी लेकिन केवल मीठा खाने वालों को थोड़ी अपच हो सकती है। फिल्म खट्टा -मीठा में हॉस्य का सहारा लेते हुए कुछ ऐसी बातों पर सवालिया निशान लगाए गए है जो देश और व्यक्ति दोनों के विकास को प्रभावित करती है। अक्षय कुमार ने सचिन टिचकुले के रोल में प्रभावी अभिनय किया है और पूरी फिल्म की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी वहीं है।


फिल्म में सचिन टिचकुले (अक्षय कुमार ) एक ऐसा पात्र है जो बड़ा इंसान बनना चाहता है, वह एक इंसान के रूप में बुरा नहीं है लेकिन सफल होने के लिए कुछ उल्टे सीधे काम करता है। वह हताश तो होता है लेकिन लड़ने की जिद उसमें गजब की है, वह देखता है कि सिस्टम ही ऐसा हो गया है कि जो भ्रष्ट है वह जल्दी -जल्दी सफल हो जाता है । वह देखता है उसके दोनों जीजा (इंजीनियर मनोज जोशी और कांट्रेक्टर मिलिंद गुणाजी )और बड़ा भाई अपनी जोड़ -तोड़ के तिकड़म के कारण उससे ज्यादा सफल है। लेकिन सचिन के पास पैसे कम होते है और वह उधार लेकर किसी तरह से मजदूरों से काम करवाता है। सचिन के पिता रिटायर्ड जज है लेकिन वह अपना सारा पैसा अपनी दोनों बेटियों के विवाह पर खर्च कर चुके है। फिल्म में सचिन की पूर्व प्रेमिका गहना (त्रिशा) एक ईमानदार पुलिस कमिश्नर के रोल में सामने आती है और थोड़ी नोक -झोक और धोखे का शिकार होने के बावजूद वह सचिन को उसकी असली पहचान बताने में सफल हो जाती है। यहीं से सचिन ईमानदारी की जंग लड़ता है और अंत में ईमानदार सचिन का असली रूप सबके सामने आता है।


फिल्म का संपादन और पटकथा कमजोर है, गीत संगीत ठीक -ठाक कहे जा सकते है लेकिन यादगार नहीं है। अक्षय कुमार का रोल शानदार है और त्रिशा भी बेहतर ही नजर आई है। उर्वशी शर्मा ने अक्षय की बहन के रोल में बेहतर रोल अदा किया है। राजपाल यादव, जॉनी लीवर का रोल और बेहतर हो सकता था। जहां तक निर्देशन की बात है तो प्रियदर्शन ने इस फिल्म के माध्यम से अपने दर्शकों को कुछ नया देने का प्रयास जरूर किया है लेकिन कमजोर संपादन और पटकथा लेखन में उलझन से बात बनते -बनते रह जाती है। आप इस फिल्म को उसके नाम के अनुासर ही कुछ खट्टी कुछ मीठी कह सकते हो ।
राजेश यादव

टिप्पणियाँ

Himani Ahuja ने कहा…
Apki kitab to bahot kuch kehti hai...
nice write ups