‘बदमाश कंपनी’ : मनोरंजन के नाम पर छलावा



रेटिंग: * *1/ 2


निर्देशक : परमीत सेठी

निर्माता : आदित्य चोपड़ा

कलाकार : शाहिद कपूर,अनुष्का शर्मा, वीर दास, मियांग चैंग, अनुपम खेर, किरण जुनेजा,पवन मल्होत्रा, जमील खान

गीत : अंविता दत्त

संगीत : प्रीतम

बैनर : यशराज

यशराज बैनर के तहत बनी फिल्म ‘बदमाश कंपनी’ में स्टार कास्ट तो जोश से भरी दिखती है लेकिन फिल्म पटकथा के स्तर पर निराश करती है। यशराज बैनर की इस फिल्म से उम्मीद तो बहुत थी लेकिन फिल्म मनोरंजन के नाम पर छलावा प्रतीत होती है। फिल्म निर्देशक परमीत सेठी ने नायक और उसके दोस्तों को धोखे के व्यापार में इतना पारंगत दिखाया है कि दर्शक घटनाओं पर विश्वास नहीं कर पाता है।


शाहिद कपूर ने फिल्म कमीने में जितना बेहतर अभिनय किया था इस फिल्म में उसके आसपास भी नजर नहीं आते हैं। रब ने बना दी जोड़ी के बाद अनुष्का शर्मा को इस फिल्म में दर्शक थोड़ा बिंदास अंदाज में देख सकते हैं, शाहिद के साथ चुंबन सीन देने में उन्होंने कोई गुरेज नहीं किया है।
फिल्म की मूल थीम है कि बड़ा बिजनेस पैसे से नहीं बड़े आइडिये से बनता है। लेकिन बदमाश कंपनी देखकर ऐसा लगता है कि निर्देशक और निर्माता ने अपने ही आइडिये पर भरोसा नहीं किया है। कुछ हॉट सीन, खूबसूरत लोकशंस और दो-चार गीतों को जोड़कर फिल्म बना ली।


फिल्म की कहानी मुंबई में रहने वाले चार दोस्तांे करण (शाहिद),बुलबुल (अनुष्का),जिंग (मियांग चैंग)चंदू (वीर दास) की जिंदगी से जुड़ी है। करण अपने आइडिए के बल पर अपने दोस्तों के साथ एक कंपनी बना लेता है । अपने नए आइडिये के बल पर सिस्टम को चीट कर पहले भारत में पैसा बनाते हैं और फिर एेसा ही वे अमेरिका में करने में सफल हो जाते हैं। कम समय में ज्यादा पैसे कमाने का फंडा अपनाते हुए चारों दोस्त अपने जिंदगी के शौक पूरा करने लगते है। करण को बुलबुल से प्यार हो जाता है और दोनों बिना विवाह के साथ रहते हैं ,जिंग को शराब के नशे का बेहद शौकीन दिखाया गया है वहीं चंदू थोड़ा अल्हड़ किस्म का है और उसे लड़कियों में बहुत दिलचस्पी रहती है। इसी बीच करण के स्वभाव में आ रहे बदलाव के चलते उसके दोस्त उससे अलग हो जाते है। बुलबुल भी उससे नाराज होकर चली जाती है। इस बीच धोखे के व्यापार के चलते करण कानूनी जांच में फंस जाता है, उसे ६ माह की सजा भी होती है। बाद में करण को अपनी भूल का अहसास होता है और बुलबुल, जिंग और चंदू को फिर से मनाने में सफल होता है। इसके बाद करण अपने मामा की कंपनी को जो घाटे में जा चुकी है अपने एक खास आइडिये से फायदा पहुंचाता है, और खुद की कपंनी के शेयर भी लगाकर लाभ कमा कर कमाल कर देता है।


फिल्म में संगीत ठीक-ठाक है और चस्का - चस्का और जिंगल- जिंगल गीत युवा दर्शकों को पसंद आने लायक है। निर्देशक परतमीत सेटी ने कहानी, संवाद और निर्देशन तीनों ही क्षेत्रों में अपना दखल रखा जरूर है लेकिन वे फिल्म के साथ न्याय नहीं कर पाए हैं। मियांग चैंग और वीर दास ने अपने किरदार के हिसाब से उम्दा काम किया है। शाहिद कपूर के अभिनय में उतार -चढ़ाव का ग्राफ फिल्म में दिखाई देता तो है लेकिन अपने दम पर पूरी फिल्म को हिट करा ले जाने का जादू नजर नही आता है।


राजेश यादव

टिप्पणियाँ

honesty project democracy ने कहा…
सब आजकल शेर के खाल में गिदर हैं / पैसों के पीछे पागल हैं / हमें ऐसे फिल्मो को नहीं देखना चाहिए और लोगों को भी नहीं देखने की सलाह जरूर देनी चाहिए /
Sanjeet Tripathi ने कहा…
same word 2 word samikshha abhi bhaskar.com ki site par padha aur ab yaha bhi...

kya aap bhaskar ke employee hain ya fir vaha se utha ke yaha paste kar diya hai bandhu?
jara clear karenge....
बेनामी ने कहा…
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