विश्लेषण: राहुल शरद द्रविड़ क्यों नहीं?


जिंदगी की किताब में आज खास :ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ खेले जाने वाली सात मैचों की वनडे सीरिज में राहुल शरद द्रविड़ को मौका नहीं दिया गया है, लेकिन क्यों? इस बात को वे बेहतर बता सकते है जिन्होंने टीम चुनी लेकिन एक बात सोचने वाली है कि क्या चैंपियंस ट्राफी में राहुल द्रविड़ का प्रदर्शन इतना खराब था? शायद नहीं, लेकिन इसके बावजूद टीम से राहुल टीम से बाहर है क्योंकि क्रिकेट अब बदल गया है भाई ताबड़तौर रन पीटने वाले बल्लेबॉज चाहिए, भविष्य की टीम बनानी है! नए खिलाड़ियों को मौका देना है! और वर्ल्ड कप २०११ भी तो जीतना है!

और इन खूबसूरत बातों के साथ वे भूल जाते है कि हम एक ऐसे खिलाड़ी को बाहर कर रहे है जिसने वनडे क्रिकेट के साथ साथ टेस्ट क्रिकेट क्रिकेट के इतिहास में दस हजार से अधिक रन बनाने वालों में तीसरे ऐसे बल्लेबाज है जिन्होंने यह कारनामा किया है, और जिसकी खेल की स्टाइल किसी भी खिलाड़ी के लिए एक आदर्श हो सकती है। लेकिन नहीं भाई राहुल के आलोचकों के पास इसका भी जबाब है, राहुल विदेशी पिचों पर भारत के लिए बेहद फायदेमंद है लेकिन भारतीय पिचों पर राहुल के बिना भी टीम इंडिया की नैया पार लगाई जा सकती है।

दरअसल यहीं वह सोच थी जिसके कारण सौरव गांगुली को बार बार टीम से अंदर बाहर किया गया था और दर्द जब हद से गुजर गया तो बंगाल के टाइगर सौरव गांगुली ने क्रिकेट की दुनियां से सन्यास ले लिया। जरा याद करें ग्रेग चैपल के उस बात को जिसमें वर्ल्ड कप की भविष्य की टीम बनाने के नाम पर सौरव गांगुली जैसे खिलाड़ि को अंदर बाहर का रास्ता दिखाने में भी संकोच नहीं हुआ था। तब चयनकतार्ओ ने टीम इंडिया के सर्वश्रेष्ठ क्रिकेटर सौरव गांगुली के साथ यह खेल खेला था, आज निशाने पर राहुल द्रविड़ है कल कोई और होगा?

दरअसल जब से बिकनी क्रिकेट टी 2० का दौर शुरु हुआ है बल्ला भाजने में माहिर बल्लेबाजों को बेहतर क्रिकेटर मान लिया गया है, कुछ पुराने खिलाड़ियों ने नई नई क्रिकेट अकादमी खोल ली है और इसमें नए क्रिकेटर तराशे जा रहे है तो यहां से निकलने वाली नई पौध को भी तो मौका मिलना चाहिए ना? इस बात में बुरा कुछ नहीं है लेकिन राहुल या सौरव गांगुली जैसे खिलाड़ी के खेल जीवन से खिलवाड़ करके नहीं।
एक खिलाड़ी जो विदेशी पिचों पर टीम की नैया पार लगाने में सक्षम है, वह देश की पिचों पर भी क्यों नहीं ?

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