बाबर : अपराध के सच को तलाशने की सार्थक कोशिश


निर्देशक : आशु त्रिखा
प्रोडच्यूसर : मुकेश शाह, सुनील एस सैनी
कलाकार : सोहम, मिथुन चक्रवर्ती, ओम पुरी, सुशांत सिंह, उर्वशी शर्मा, मुकेश तिवारी
संगीत : आंनद राज आंनद
लेखक : इकर अखत्तर
एक्शन : अब्बास अलि मुगल
बैनर : रिद्धि-सिद्धि

देश के सबसे बड़े सूबे के अपराध जगत का कड़वा सच, राजनीति और अपराध के घालमेल को फिल्म बाबर में दिखाया गया है। फिल्म में धोखेबाजी, रंगदारी, और अपराधियों के आपसी टकराव के साथ राजनेताओं के साथ इसके रिस्तों को बखूबी दिखाया है। फिल्म बताती है कि बाबर पैदा नहीं होता, वह समाज के बीच से ही निकलता है और इसके लिए उसके आसपास का माहौल ही दोषी होता है। फिल्म कहती है बाबर था, है और रहेगा..बस समय के साथ उसका चेहरा बदल जाता है।

यह फिल्म एक आईना है जिसमें आज के राजनेताओं का चरित्र, अफसरों की सोच और उत्तरप्रदेश में पनप रहे अपराधियों की दुनियां की झलक साफ-साफ दिखाई देता है। फिल्म अमनगंज के उस इलाके से शुरु होती है जहां एक छोटी सी बात में दो गुटों में आपसी कहा सुनीं में खून खराबा हो जाता है। इसी माहौल में पल बढ़ रहा परिवार का एक छोटा सदस्य बाबर (सोहम सिंह)१२ साल की उम्र में एक खून कर देता है और जवानी की दहलीज पर पहुंचते पहुचतें वह सूबे के अपराध जगत का एक ऐसा नाम बन जाता है जिससे हर कोई खौफ खाता है। लेकिन तरबेज (सुशांत सिंह) एक अन्य अपराधी भी है जो राजनीतिज्ञ भैय्या जी की छत्रछाया में अपराध जगत में सक्रिय है और वह बाबर को पसंद नहीं करता। इन दोनों की आपसी लड़ाई के साथ साथ फिल्म की कहानी आगे बढ़ती है लेकिन बाबर का आतंक इस कदर बढ़ता है कि वह मुख्यमंत्री के भाई हरपाल सिंह पर हमला कर देता है। इसके बाद फिल्म में तेजी से परिवर्तन आता है और पुलिस अपने रंग में आती है और इसके एसपी मृत्युन्जय (मिथुन चक्रवर्ती )बाबर और अमनगंज के अपराधियों पर लगाम लगाते है। लेकिन इस दौरान वह अपने ही एक सहयोगी के द्वारा की गई दोखेबाजी का शिकार होकर बाबर की गोली से मारे जाते है।

फिल्म में बाबर का अंत जिस तरह से दिखाया गया है वह भी अपने आप में कई बातों पर सोचने पर विवश करता है।फिल्म में सोहम सिंह ने बाबर की भूमिका के साथ न्याय करने का प्रयास तो किया है लेकिन अभिनय में और तिखापन होता तो कुछ और बात होती। तरबेज की भूमिका में सुशांत सिंह, और एसपी की भूमिका में मिथुन चक्रवर्ती ने बेहतरीन काम किया है। ओम पुरी ने भी कमाल का अभिनय किया है, उर्वशी सिंह जिया के रोल में ठीक- ठाक रहीं है। लेकिन इन सब बातों के साथ फिल्म में थोड़ा तिखापन और कसावट की कमी भी दिखलाई देती है। फिल्म में सूत्रधार के रुप में जिस बच्चे की आवाज को इस्तेमाल किया गया वह एक उम्दा प्रयास है।


गीत - संगीत कम है लेकिन जीतना भी है उम्दा है खासकर सूफीयाना अंदाज में जिदंगी को तलाश करता गीत विशेष है। फिल्म में यूपी स्टाइल में फिल्माया गया सांग भी उत्तर भारत में दर्शकों को पसंद आएगा। बड़े शहरों में भले फिल्म ना जुटा पाए लेकिन उत्तर भारत के छोटे शहरों में फिल्म पसंद किए जाने योग्य है।

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Rajesh yadav

टिप्पणियाँ

संजय तिवारी ने कहा…
आपको हिन्दी में लिखता देख गर्वित हूँ.

भाषा की सेवा एवं उसके प्रसार के लिये आपके योगदान हेतु आपका हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ.