‘सिकंदर’ : दिल को छू लेने वाली फिल्म


फिल्म समीक्षा : ‘सिकंदर’


निर्देशक : पीयूष झा


कलाकार : परजान दस्तूर, आयशा कपूर, आर. माधवन, संजय सूरी,अरूणोदय सिंह


बैनर : बिग पिक्चर


कश्मीर की वादियों में बचपन की खोज करती फिल्म ‘सिकंदर’ बेहद संवेदनशील फिल्म है। यह एक ऐसी फिल्म है जिसकी पटकथा में अपने समय का सच छुपा हुआ है और जिसे फिल्म के निर्देशक ने बहुत ही कमाल के अंदाज में बताने का प्रयास किया है। आतंकवाद के साए में लंबे समय से कश्मीर के बच्चों का बचपन कहीं खो सा गया है और उसी बचपन की खोज करती फिल्म है ‘सिकंदर’। अमन के लिए जंग का रास्ता एक लतीफे की तरह लगता है जिसे दहशतगर्द जेहाद के नाम से पुकारते है।


पूरी फिल्म सिकंदर रजा (परजान दस्तूर ) नसरीन (आयशा कपूर ) के आसपास घूमती है। ‘सिकंदर’ और नसरीन एक ही स्कूल में पढ़ते है और सिकंदर एक बड़ा फुटबॉलर बनने का सपना भी देखता है। लेकिन स्कूल जाने वाले रास्ते में उसे एक दिन एक बंदूक मिल जाती और फिर यहीं से सिकंदर रजा की जिंदगी में बदलाव आता है।


वह जेहादी समर्थक सागिर (अरूणोदय सिंह) के निगाह में आ जाता है और एक दिन उसके हाथों से सागिर का ही कत्ल हो जाता है। फिल्म में सिंकदर का साथ नसरीन हर खास अवसर पर देती है और दोनों में प्यार भरा दोस्ताना दिखाया गया है।


फिल्म में दूसरी तरफ भारतीस सेना के जवान कर्नल राजेश राव (आर. माधवन) जो आतंकवाद के खिलाफ कश्मीर में जंग लड़ रहे है और वह आंख के बदले आंख निकालने में विश्वास रखते है लेकिन गुमराह लोगों को एक अवसर देने में भी वह विश्वास करते है। वहीं दूसरी तरफ कश्मीर पीस पार्टी के नेता की भूमिका में मुख्तार मट्टू (संजय सूरी) ने दोहरे चरित्र की भूमिका निभाई है। लेकिन अंतत: वह अपनी ही गुले कश्मीर के हाथों मार दिया जाता है।


जहां तक कलाकारों की बात है तो परजान दस्तूर ने सिकंदर की भूमिका में बेहतरीन अभिनयन किया है। कभी कुछ कुछ होता है फिल्म में सरदार जी की भूमिका में यह लड़का आपको हंसा चुका है लेकिन इस फिल्म में वह बेहद संवेदनशील भूमिका में है। परजानिया के बाद सिकंदर उनके लिए एक खास पहचान देने वाली फिल्म है।


फिल्म ब्लैक में सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री की भूमिका में आईफा अवार्ड जीतने वाली आयशा कपूर ने भी नसरीन का रोल बेहद संजीदगी से निभाया है। वहीं युवा कलाकार अरूणोदय सिंह ने भी खास अंदाज में अपने रोल की बखूबी अंजाम दिया है। माधवन और संजय सूरी का अभिनय भी ठीक ठाक रहा है।
सिकंदर आम फिल्मों से हटकर है और इसे देखने वाला दर्शक वर्ग भी सार्थक सिनेमा की समझ रखने वाला ही सिनेमा हॉल तक जाएगा। सिंकदर फिल्म मेट्रो शहरों के मल्टीप्लेक्स सिनेमा में दर्शक जुटा सकती है ।


सुधीर मिश्रा और बिग पिक्चर के बैनर तले बनी फिल्म सिकंदर ऑस्कर अवार्ड के लिए भारत की तरफ से भेजे जाने की तगड़ी दावेदार हो सकती है। एक बार देखने योग्य एक बेहतर फिल्म है। धूप के सिक्के बचपन में बड़े खूबसूरत होते है जिसे पाने का हक हर बच्चे को होता है चाहे वह दुनिया के किसी कोने में हो। एक खूबसूरत ौर महफूज बचपन आखिर हर बच्चे का हक जो है।


*** देखने योग्य
RAJESH YADAV

टिप्पणियाँ

Unknown ने कहा…
namste bhaita
kayse ho, aaj pahli bar kuch reply kar raha hu . . .sikander k bare me bahut accha likha hai aapne.