साधों आज सुबह से मारा दिल बल्लियों उछाल मार रहा था दिल की धड़कनें सेंसेक्स के उतार चढ़ाव की तरह अप एंड डाउन कर रहीं थी । वैसे यह प्रोग्राम रात के प्राइम टाइम से ही शुरु हो गया था और कमबख्त इश्क की मार कहें या जेब से प्यार बजट पर अपने बंगाली बाबू का जादू देखने को अपना जिया बड़ा बेकरार था।
एक नई नवेली दुल्हन की धड़कन की तरह रास्ते में मिले सोम बाबू का अर्थतंत्र भी कुलांचे मार रहा था। रास्ते में एक आम आदमी के स्कूटर पर लिफ्ट लेकर सवार हुआ तो पेट्रोल की मार का अहसास उसके चेहरे पर साफ पढ़ चुका था।
खैर उसे दिलासा दे अपुन अपने दोस्त अलमस्त के साथ टीवी पर चिपक गए बाबा टैक्स गुरु उर्फ बंगाली बाबू के अर्थतंत्र का जादू का पिटारा देखने को बेकरार हो लिए। पिटारा खुला, अलमस्त जादू की पुड़िया खोजता रह गया और बंगाली बाबू ने पलक छपकते ही सब मेधावी छात्र की तरह पढ़ दिया। झल्लाकर अलमस्त बोला अमां यार अपुन को तो पूरे बजट के पिटारे में दो बातें समझ में आई एक अपने गांधी बाबा का नाम दूजे वो महान राजा वाली बात जिसे हर आपदा का पहले से अनुमान हो जाता था । अलमस्त ने आंखंे तरेरते हुए कहां अमां यह जो वित्तमंत्री टाइप आदमी है इसने कभी अर्थशास्त्र नहीं पढ़ा फिर भी बेहतरीन बजट देता है और हम अंग्रेजी के छात्र होकर भी वाचन समझ नहीं पाए घोर कलयुग है।
अमां यार तुम्हारे टॉप फ्लोर का गणित क्या कहता है इस बार कितनी कटी जेब। चंद बचे बालों को सहलाते हुए अपुन ने गंभीर होकर कहा जेब तो मुरली बाबू ने पहले ही काट दी थी सो इस बार बजट में च्यूंगम चबाने के अलावा और कुछ था नहीं सिवाय आम आदमी के अलावा। और यार तुम ठहरे सनातन संघी सो कांग्रेसियों की चाल तुमको कभी समझ में आती नहीं। महिला, युवा, आम आदमी और गरीब आज की राजनीति के नए मुहावरे हैं और इनको समझ गए तो बजट के ककहरे के नए उस्ताद बन जाओगे। चिंदबरम से प्रणब दा तक आते-आते अर्थतंत्र इस तरह घूमा कि काले कोट वालों को भी मंदी के माहौल में फरमान आ गया। बेटा अब बताओ कितना कमाया।
अब अपने मोहल्ले की दो देवियों का हाले दिल सुन लो ये दुर्गा और महालक्ष्मी के बोल वचन तो और भी मारक थे। अरे गहने सस्ते कर कौन सी बड़ी बात कर दी एकता कपूर के सीरियल के अलावा अब गहने कौन पहनता है। दुर्गा ने तेवर कड़े करते हुए कहा चेन स्नेचरों की बढ़ती संख्या से तो अब घर से बाहर निकलना भी मुश्किल हो गया है और अब तो तड़क-भड़क कपड़े ना पहनो तो बात कहां बनती है यार। अब मैंने महालक्ष्मी की तरफ देखा संकेत समझते ही महालक्ष्मी ने कहा यार मंदी की मार थी सो चलता है थोड़ा गम थोड़ी खुशी यही तो है जिदंगी। अब हर मौसम में ‘रोशोगुल्ला ’की उम्मीद करना बेमानी है ना देवा।
राजेश यादव
एक नई नवेली दुल्हन की धड़कन की तरह रास्ते में मिले सोम बाबू का अर्थतंत्र भी कुलांचे मार रहा था। रास्ते में एक आम आदमी के स्कूटर पर लिफ्ट लेकर सवार हुआ तो पेट्रोल की मार का अहसास उसके चेहरे पर साफ पढ़ चुका था।
खैर उसे दिलासा दे अपुन अपने दोस्त अलमस्त के साथ टीवी पर चिपक गए बाबा टैक्स गुरु उर्फ बंगाली बाबू के अर्थतंत्र का जादू का पिटारा देखने को बेकरार हो लिए। पिटारा खुला, अलमस्त जादू की पुड़िया खोजता रह गया और बंगाली बाबू ने पलक छपकते ही सब मेधावी छात्र की तरह पढ़ दिया। झल्लाकर अलमस्त बोला अमां यार अपुन को तो पूरे बजट के पिटारे में दो बातें समझ में आई एक अपने गांधी बाबा का नाम दूजे वो महान राजा वाली बात जिसे हर आपदा का पहले से अनुमान हो जाता था । अलमस्त ने आंखंे तरेरते हुए कहां अमां यह जो वित्तमंत्री टाइप आदमी है इसने कभी अर्थशास्त्र नहीं पढ़ा फिर भी बेहतरीन बजट देता है और हम अंग्रेजी के छात्र होकर भी वाचन समझ नहीं पाए घोर कलयुग है।
अमां यार तुम्हारे टॉप फ्लोर का गणित क्या कहता है इस बार कितनी कटी जेब। चंद बचे बालों को सहलाते हुए अपुन ने गंभीर होकर कहा जेब तो मुरली बाबू ने पहले ही काट दी थी सो इस बार बजट में च्यूंगम चबाने के अलावा और कुछ था नहीं सिवाय आम आदमी के अलावा। और यार तुम ठहरे सनातन संघी सो कांग्रेसियों की चाल तुमको कभी समझ में आती नहीं। महिला, युवा, आम आदमी और गरीब आज की राजनीति के नए मुहावरे हैं और इनको समझ गए तो बजट के ककहरे के नए उस्ताद बन जाओगे। चिंदबरम से प्रणब दा तक आते-आते अर्थतंत्र इस तरह घूमा कि काले कोट वालों को भी मंदी के माहौल में फरमान आ गया। बेटा अब बताओ कितना कमाया।
अब अपने मोहल्ले की दो देवियों का हाले दिल सुन लो ये दुर्गा और महालक्ष्मी के बोल वचन तो और भी मारक थे। अरे गहने सस्ते कर कौन सी बड़ी बात कर दी एकता कपूर के सीरियल के अलावा अब गहने कौन पहनता है। दुर्गा ने तेवर कड़े करते हुए कहा चेन स्नेचरों की बढ़ती संख्या से तो अब घर से बाहर निकलना भी मुश्किल हो गया है और अब तो तड़क-भड़क कपड़े ना पहनो तो बात कहां बनती है यार। अब मैंने महालक्ष्मी की तरफ देखा संकेत समझते ही महालक्ष्मी ने कहा यार मंदी की मार थी सो चलता है थोड़ा गम थोड़ी खुशी यही तो है जिदंगी। अब हर मौसम में ‘रोशोगुल्ला ’की उम्मीद करना बेमानी है ना देवा।
राजेश यादव
टिप्पणियाँ
bahut achha lekh
shaandaar !
Regards..
DevSangeet